तंगदिल कितने ये चहरे हो गए।
बस उदासी के ही पहरे हो गए।
*****
है बड़ा गुमसुम बशर हर आज तो।
जो निशाँ हल्के थे गहरे हो गए।
*****
कान होते हैं दिवारों के सुना।
आदमी लेकिन हैं बहरे हो गए।
*****
जो किया करते थे बातें प्यार की।
वक्त बीता वो भी बूढ़े हो गए।
*****
जो सरल लगते रहे थे रास्ते।
क्यूं बुढ़ापे में वो टेढ़े हो गए।
*****
सुनीता असीम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें