सुनीता असीम

मेरे पीछे मेरी बीबी पड़ी है।


लेगी गहने इसी जिद पे अड़ी है।


***†


न खाना और पानी भी मुझे दे।


जिधर देखूँ उधर सर पर खड़ी है।


****


न सोने दे न रोने दे मुझे वो।


मुझे भेजे वो लानत भी बड़ी है।


****


बचूं कैसे कोई मुझको बताए।


वो मुझको धूप सी लगती कड़ी है।


****


 कि मैंने मान ली अब मांग उसकी।


 उसे दे दी अंगूठी नग जड़ी है।


****


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...