हसीना सिर्फ तुलना चाहती है।
क़सीदे-हुस्न सुनना चाहती है।
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नहीं देखे वो औरों की तरफ को।
वो आशिक पे ही मरना चाहती है।
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नहीं मुंह खोलती करती इशारे।
न जाने क्या वो कहना चाहती है।
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जो आंखें चार आंखों से हुईं फिर।
वो दिल में भी तो रहना चाहती है।
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हुई है आशिकों की सिर्फ शामत।
जिसे चाहे वो पाना चाहती है।
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सुनीता असीम
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