ख़ास रिश्ते कुछ बनाना और है।
पर उन्हें दिल से निभाना और है।
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सामने सबके दया दिखला रहे।
दांत हाथी के दिखाना और है।
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दिल दुखाना है बड़ा आसान सा।
ज़ख़्म पर मरहम लगाना और है।
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अब सितारों में नहीं अपना जहां।
आज अपना आशियाना और है।
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आज कच्ची डोर रिश्तों की हुई।
हीर रांझा का फ़साना और है।
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दिलजलों का इक ठिकाना और था।
घर कहीं अपना बसाना और था।
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लुट गए थे आशिकी में दिल लगा।
पास आने का बहाना और था।
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कह रहे हैं आज बच्चों से यही।
के रहा उनका जमाना और था।
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इक खड़ी दीवार उनके बीच थी।
जात का बंधन पुराना और था।
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उम्र के इस दौर में यादें बचीं।
वो रहा मौसम सुहाना और था।
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सुनीता असीम
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