इक कमाई धर्म की हम भी कमा ले जाएंगे।
मोह माया झूठ के नाते बहा ले जायेंगे।
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जोड़ कर दौलत नहीं कुछ काम आती है यहां।
सोचती हूं हम खुदा के पास क्या ले जायेंगे।
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जब बहीखाता बनेगा स्वर्ग में अपना कभी।
कर्म सारे कर सही खुद को बचाले जाएंगे।
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जो ग़रीबों की नहीं सुनते कभी भी आह को।
वो सभी तो आग में दोजख़ की डाले जायेंगे।
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आत्मा पर बोझ होगा ही नहीं कोई बड़ा।
गर दया के भाव मन में सिर्फ पाले जायेंगे।
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सुनीता असीम
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