सच्ची श्राद्ध
जीते जी सेवा किया नहीं,
बस मरने पर श्राद्ध मनाते हैं।
ऐसी संताने हैं कुल कलंक ,
मृत पुरखों को बहलाते हैं ।
यदि देनी सच्ची श्रद्धांजलि ,
है प्यारे पुरखों को अपने ।
तब धर्म करो सत्कर्म करो ,
अरु पूर्ण करो उनके सपने ।
यह वन्दन है अभिनंदन है ,
यह ही पुरखों का है तर्पण ।
उनकी स्मृतियों को हृदय लगा,
श्रद्धा के सुमन करो अर्पण ।
तब पूर्वज भी होंगे प्रसन्न ,
पा सच्चे प्रेम समर्पण को ।
नित देंगे ढेरों शुभाशीष,
फिर देख प्रेम शुचि अर्पण को ।
सुषमा दिक्षित शुक्ला
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