राष्ट्रकवि दिनकर जी को समर्पित रचना
अद्भुत अनुपम लेखनी, दिनकर से विस्तार।
राष्ट्र कवि के रूप में, छवि बसती खुद्दार।
वीरों की गाथा कहे, कुरुक्षेत्र के रूप ,
खण्डकाव्य शोभित करे,अभिव्यक्ति आधार।।
ओजपूर्ण श्रृंगार भी, दोनों रूप समान।
कुरुक्षेत्र अरु उर्वशी, लेखन का प्रतिमान।
हिन्दी के साहित्य का,दिनकर बने प्रभात,
राष्ट्रकवि ये ओज के, भारत का सम्मान।।
गौरव गाथाएँ लिखे, लिखे प्रेम का रूप।
श्रंगारिक है छाँव तो, ओज लगे ज्यूँ धूप।
दिनकर सा साहित्य ही,सजा देश के भाल,
शब्द लेखनी है प्रबल, लेखन के हैं भूप।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
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