मुस्कराना देख कर हम बेरुख़ी कैसे कहें।
बेसबब की दिल्लगी को आशिकी कैसे कहें।
खेलना दिल से रहा उसका पुराना है शगल।
हुस्न की इन हरकतों को गुदगुदी कैसे कहें।
वह पुरानी दोस्ती का वास्ता फ़िर दे रहा।
दुश्मनी थी मुद्दतों से अजनबी कैसे कहें।
मुंन्तज़िर थी ये निगाहें आपके ही ख़्वाब की।
नींद ने की बेवफ़ाई बेख़ुदी कैसे कहें।
जो रहा हमदर्द अब तक दर्द उसने ही दिया।
ग़म छुपा कर मुस्कुराती ज़िन्दगी कैसे कहें।
होश अपना हम सँभाले या सँभाले आपको।
ग़म जुदाई का मिला तो हम खुशी कैसे कहें।
खुबसूरत थे नज़ारे हर तरफ़ थी रागिनी।
तेरी महफ़िल में खली उत्तम कमी कैसे कहें।
®@ उत्तम मेहता 'उत्तम'
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