इस दर्जा शोखियों को जताया न कीजिए
बेताबियों को मेरी बढ़ाया न कीजिए
होश-ओ-हवास पर ही मैं काबू न रख सकूँ
भर भर के जामे-हुस्न पिलाया न कीजिए
इतनी सी सिर्फ़ आप से है इल्तिजा सनम
शर्तें लगा के पास बुलाया न कीजिए
मुद्दत से तशनगी में सुलगते हैं रोज़ो-शब
बीमारे-ग़म को अपने सताया न कीजिए
उल्फ़त की रौशनी से चमक जायेगी हयात
जलते हुए चराग़ बुझाया न कीजिए
मिन्नत के बावजूद पसीजे नहीं हुज़ूर
इतना सितम ग़रीब पे ढाया न कीजिए
*साग़र* न दर्दो-ग़म से तड़प उठ्ठे ज़िन्दगी
नज़रों के तीर इतने चलाया न कीजिए
🖋️विनय साग़र जायसवाल
तशनगी-प्यास
रोज़ो-शब--दिन रात
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