विनय साग़र जायसवाल 

बेकैफ़ हो गई है मुलाकात इनदिनों


बरसे नहीं है उनकी इनायात इनदिनों


 


उठते हैं दिल में ऐसे सवालात इन दिनों


मिलते नहीं हैं जिनके जवाबात इनदिनों


 


सूरज से छेड़ दी है सितारों ने जंग क्या 


सरगोशियों में महव हैं ज़र्रात इनदिनों


 


अब तितलियों का ख़ून भी पीने लगे हैं फूल 


कितनी बदल गईं हैं रिवायात इनदिनों 


 


जुगनू भी कर रहे हैं अंधेरों में ख़ुदकुशी


बदली हुई है सूरते-हालात इन दिनों 


 


अहल-ए-सितम भी पढ़ने लगे मेरी दास्ताँ 


अच्छी लगी है उनको मेरी बात इनदिनों 


 


बच्चे तो अब तरस गये पानी के खेल को


होती थी वर्ना शहर में बरसात इनदिनों


 


साग़र हमारे दौर के बच्चों की जुस्तजू


करते हैं देखो कितने तज्रिबात इनदिनों 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल 


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