मुक़द्दर का लिखा मिटता नहीं है
यक़ीं इस पर मगर टिकता नही है
हमारी हैसियत समझेगा क्या वो
हुनर से जो कि वाबस्ता नहीं है
वो इन्सां है या है कोई फ़रिश्ता
लिबासों से पता चलता नहीं है
इसी इक बात से हूँ मुतमइन मैं
वो वादे से कभी हटता नहीं है
तड़पता है ये दिल चाहत में जिसकी
यही मुश्किल है कि वो मिलता नहीं है
फ़साना है बदलते दौर का यह
कि बच्चा बाप से डरता नहीं है
शिकायत है यही बस हमको साग़र
तू दिल की बात को सुनता नहीं है
🖋️विनय साग़र जायसवाल
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