हम बनायें चलो उस जगह आशियां
कोई आये न दूजा जहां दर्मियां
वो जगह कोई मंदिर से कम तो नहीं
मिल रहें को जहाँ पर ज़मीं आसमां
जब अकेला ही मैं आगे बढ़ने लगा
पीछे आने लगा इक मेरे कारवां
उसने घोले मेरी ज़ीस्त में ऐसे रंग
लोग सुनते हैं अब तक मेरी दास्तां
गिरह---
उस जगह आशियाँ क्यों बनायेंगे हम
*सूख जाते हैं दरिया के दरिया जहां*
पर निकलते ही ताइर सभी उड़ गये
किस कदर है पशेमान अब बाग़बां
चंद सिक्के ही साग़र दिये थे उसे
दी दुआ उसने खिलता रहे गुलसितां
विनय साग़र जायसवाल
बरेली
8/9/2020
ताइर-पंछी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें