कैसा है रंगे-गर्मीये-बाज़ार देखिये
मायूस सा खड़ा है खरीदार देखिये
हुस्ने-मतला
इतनी है तेज़ वक़्त की रफ़्तार देखिये
मेरी थकन ही बन गई दीवार देखिये
बौना हूँ मैं भी वक़्त के इंसान की तरह
झुक कर ज़रा मुझे मेरे सरकार देखिये
मुँह खोलने की कोशिशें जब-जब भी हम करें
आ जाता है उधर से तो इंकार देखिये
फैली हुई है तीरगी आँगन में हर तरफ़
सूरज की रौशनी पसे-दीवार देखिये
उठ्ठी नहीं नज़र ही मेरी उसके सामने
कैसे करूँ मैं प्यार का इज़हार देखिये
गरदन हमारी क्या झुकी साग़र जहां में आज
उठती है हर तरफ़ नई तलवार देखिये
🖋️विनय साग़र जायसवाल बरेली यूपी
तीरगी-अंधेरा
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