विनय साग़र जायसवाल

उनका महफ़िल में जैसे ही आना हुआ


सारा माहौल ही आशिक़ाना हुआ 


 


गुफ्तगू उसने ऐसी अदाओं से की


गोशा गोशा ये दिल शायराना हुआ 


 


हम उसी दिन से बन ठन के रहने लगे


उनकी आँखों में जबसे ठिकाना हुआ 


 


दिल के टुकड़ों पे उफ तक न हम भर सके


वार ही इस कदर क़ातिलाना हुआ


 


इस मुहब्बत ने ऐसे खिलाये हैं गुल 


रोज़ तैयार ही इक तराना हुआ


 


मेरे महबूब के सिर्फ़ आने से ही 


ख़ूबसूरत मेरा आशियाना हुआ 


 


उनसे साग़र बढ़ीं निस्बतें इस कदर 


मेरा अंदाज़ भी सूफ़ियाना हुआ 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...