बहुत कुछ लिख गया मैं वक़्त में बहकर ।
साथ राह यूँ वक़्त , वक़्त पर मेरा होकर ।
रूठते रहे अपने कभी वक़्त की राहों पे ।
यूँ सहारा दिया अल्फ़ाज़ ने मेरा होकर ।
बहुत कुछ...
अश्क़ गिरे पन्नो पर , लफ्ज़ बनकर ।
दर्द निगाहों से , चले ग़जल बनकर ।
सफ़े-दर-सफ़े सफर रहा कलम का
लफ्ज़ लफ्ज़ मेरा हिसाब बनकर ।
बहुत कुछ...
ख़्वाब सहेजे कुछ ख़्याल समेटे हुए।
कुछ सँग उठ खड़े कुछ अधलेटे हुए ।
थी जमीं हक़ीक़त ख़्वाब के ख़यालों में।
रही अंगूर की बेटी काँच के प्यालो में ।
बहुत कुछ ...
ख़ामोश थीं वो खुशियाँ , दर्द बोलते रहे ।
तूफ़ान के इशारों से ,समन्दर डोलते रहे ।
मैं होश में रहा, मगर , मदहोश रहकर।
इश्क़ तेरे अंदाज से, मैं हैरां होकर ।
.. विवेक दुबे निश्चल
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