*दोहा गीतिका*
आज साथ ऐ साथिया, चलूँ चाँद के पार।
जहाँ प्यार ही प्यार हो, गढ़ ऐसा संसार।।
हम दोनों का साथ हो, धड़कन साँसों भाँति,
एक दूजे में लीन हो, खोजे मनुज हजार।।
नयनों से नयना मिले, अभिव्यक्ति हो मौन,
घायल करते नैन ये, जैसे चले कटार।।
सुर सरगम के साथ मैं,गीत सुनाऊँ मीत,
गीतों में तल्लीन हो, छेड़ूँ दिल के तार।।
प्रेम अगन यूँ जल रही, मन में है इक आस,
बुझा सकोगे आग ये, गाकर मेघ मल्हार।।
प्यार सृष्टि का रूप है, शोभित सभ्य समाज,
प्यार सत्य लेता सदा, साधक का आकार।।
प्यार बिना जीवन कहाँ, सौम्य सुखद यह भाव,
हो *मधु* का मनमीत तुम,ईश्वर का आभार।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
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