आशा त्रिपाठी

*वात्सल्य ममता की देवी,*


*ईश्वर का अमूल्य वरदान।*


*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*


*भूल गये हम नारी सम्मान*।।


माँ का रुप धरा इस जग मे,


जन्म दिया ले पीर अपार।


रुप बहन का धरकर इसने,


भाई का ऋण दिया उतार।


पत्नी बन घर स्वर्ग बनाती,


जननी का न करो अपमान।


*वात्सल्य ममता की देवी,*


*ईश्वर का अमूल्य वरदान।*


प्रीत प्रेम सिखला देती है,


श्याम प्रिया राधा बनकर।


बेटी का धर रुप निराला,


भाग्य जगाती बन दिनकर।


गृह की सोन चिरैया है ये,


चहक रही वन बाग विहान।


*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*


*भूल गये हम नारी सम्मान*।।


पुरुषों के संग कदम मिलाती,


चहुँ ओर बड़े करतब दिखलाती।


  खेल,रेल,सेना में जाकर,


देश काल इतिहास बनाती।।


साहस की अद्भूत देवी को,


अपमानित करता इन्सान।


*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*


*भूल गये हम नारी सम्मान*।।


ब्रह्मा ,विष्णु, शंकर निशदिन,


माँ काली का ध्यान करे।


जाने क्यू यह कुँठित मानव,


पल प्रतिपल अपमान करे।


देश की मासूम कलियों को,


नर पिशाच नित लेते जान।


*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*


*भूल गये हम नारी सम्मान*।।


मानवता है हमे सिखाती,


दिव्य प्रेम करुणा बरसाती,


काली,दुर्गा,मीरा बनकर,


साहस ,त्याग का बोध कराती।


दुख में सुख में रहे सहजता,


नारी को सौ-सौ बार प्रणाम।


*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*


*भूल गये हम नारी सम्मान*।।


आशा त्रिपाठी


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