अभय सक्सेना

2 अक्टूबर पर विशेष :


🙈आंख कान मुंह बंद 🙉


तीन बंदरों की तरह ही था नचाया।।🙊


✍️अभय सक्सेना एडवोकेट


 


👉एक दिन बैठे बैठे मन में ,


यूं ही यह विचार आया।


मैंने झट से गांधी जी को,


अपनी कविता में सजाया।।


👉 जिन्होंने सत्य और अहिंसा का डंका, विश्व भर में था बजाया‌।


 अपनी अहिंसा प्रवृत्ति से,


 अंग्रेजों को भारत से था भगाया।।


👉तन पर धोती, हाथ में लाठी,


 आंखों पर चश्मा था लगाया।


 तकली चरखा कांत कांत कर, 


उन्होंने फिर सूत था बनाया।।


👉 वक्ते आजादी नेहरू जिन्ना ने, 


अपने चक्कर में था खूब फसाया ।


अखंड भारत को अपनी जिद से, 


भारत-पाक में था बटवाया ।।


👉अहिंसा के पुजारी ने राष्ट्र को ,


धर्म के नाम पर था बटाया।


 पाक को इस्लामिक राष्ट्र ,


 भारत को लोकतांत्रिक का था दर्जा दिलाया।।


👉नेहरू जिन्ना के दबाव ने,


 उन पर इतना था बोझ बढ़ाया।


फिर राष्ट्र पिता ने तीन बंदरों का, प्रतीकात्मक रूप था बनाया।।


👉बुरा मत देखो, सुनो और बोलो का, अनसुलझा था पाठ पढ़ाया।


जिसका अर्थ, हमारे चिंतकों ने ,


हमको हमेशा था उल्टा ही बताया।।


👉बुराईयों पर बोलने, सुनने, देखने का, मतलब हमेशा गलत ही था बताया।अभय संग वर्षों तक सबको ,


तीन बंदरों की तरह ही था नचाया।।


👉अभय संग वर्षों तक सबको ,


तीन बंदरों की तरह ही था नचाया।।


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


✍️ अभय सक्सेना एडवोकेट


मो.9838015019


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...