मां की पुकार
------------------
अभय सक्सेना एडवोकेट
लुटी थी कभी मैं
विदेशियों के हाथों।
लुट रही हूं आज मैं
अपने ही हाथों।।
कोई तो आओ
अपनों से बचाओ।
सुनकर मां की पुकार
चीख उठा हिन्दुस्तान।।
----------
रखवाले
------------
धरती मां
रही पुकार
कहां गए
मेरे नौनिहाल।
जिन्होंने सींचा था
कभी अपने खून से
आखिर कहां गए
उस खून के रखवाले।।
-------
अभय सक्सेना एडवोकेट
४८/२६८, सराय लाठी मोहाल, जनरल गंज कानपुर नगर।
मो.९८३८०१५०१९
८८४०१८४०८८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें