डा. नीलम

*रावण के सवाल*


 


मैं तो अपनी सभी बुराई


मुख पर लेकर जीता था


मन का हर भाव मेरे 


चेहरे पर लक्षित होता था


 


दसआनन मेरे दस बुराई के


प्रतीक थे


पर नाभि में मेरे प्राण अमृत


कुंभ में थे


 


कोई हिना दे कोई भी कुकर्म मेरा ,जो मैने जन संग किया


शिव का परम भक्त फिर कैसे कामी हो सकता था


 


भाई था ,बहन की रक्षा का वादा हर बार करता था


फिर बहन के अपमान को 


क्यों कर सहन करता मैं


 


सीता का अपहरण मात्र 


अहसास कराना भर था


नारी अस्मत से खिलवाड़


करना नहीं मेरा मकसद था


 


अन्याय का प्रतीक मुझे बना


सबने मेरा दहन किया


पर राम ने कब लंका में मेरा दहन किया?


 


मेरी अंतिम स्वास निकले


उससे पहले !


भ्राता लखन को मुझसे ही सीख लेने भेजा था


 


बार- बार हर बार मुझे तुम जलाते आए हो


पर अपने अंदर के राक्षस


को कब कहाँ मार पाए हो


 


तुम में रावण बसता है


कैसे कह दूं


मुझसा ग्यान-ध्यान कहाँ तुममें बतला दो तुम


 


भक्ति,शक्ति और नीति 


तीनों ही गुण थे मुझमें


तुम में कौनसा गुण है


बतलादो मुझको तुम


 


मेरी वाटिका में तो सुरक्षित सीता रही


अपहरण किया अवश्य था 


मगर नार पराई सम्मानित रही


 


अहम् अहंकार और हवस में


तुम झुलसते रहते हो


हो अगन तेज तो माँ ,बहन


बेटी को भी सरेआम शिकार बनाते हो


 


फिर किस हक से बतलादो


तुम मुझको जलाते हो


अपने भीतर की हवस को


क्यों नहीं जलाते हो।


 


       डा. नीलम


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