सम्पूर्ण जगत है तुझमें बसता
मां तूं ही सबकी पालन हार है
तेरे हवन, दीप, नैवेद्य से
मां तरता सकल संसार है।
श्वेत तुम्हारी आभा माते
भाती सबको लगती पावन है
श्रीफल से लगता भोग तुम्हारा
हर कष्ट जगत का बृषभ वाहन है।
मां सबकी पूर्ण करे मनोरथ सारे
ध्यान धरे जो तेरा ऐसा प्रताप है
सुख-संतान, धन-वैभव से भर देती
महिमा अवर्णनीय हर लेती संताप है।
दयानन्द त्रिपाठी दया
महराजगंज, जनपदवार
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