दीपक शर्मा

*जनता और जन-प्रतिनिधि*


 


कुछ लोग 


मंच पर बैठे हैं


और कुछ लोग 


मंच के नीचे थे


मंच पर बैठे लोग


जन-प्रतिनिधि थे


और मंच के नीचे 


आम जनता थी


जन-प्रतिनिधि लोग


बता रहे थे


इतिहास में दर्ज


अपने पुरुखों की कहानियाँ


दिखा रहे थे 


फ्रेम में मढ़ाये उनके चित्र


और चित्र के नीचे उनके स्वर्णिम नाम


वे नाम


राजा के थे


मंत्री के थे


सलाहकार और मनीषी के थे


 


एक दूसरा मंच था


जिस पर बैठे


कविगण, लेखक और दार्शनिक 


उनकी महिमा का


प्रशस्ति-गान कर रहे थे


 


मौन जनता


उन चित्रों में


इतिहास में


गायन में


ढूँढ़ रही थी


अपने पुरुखों का नाम


जिन्होंने सबसे आगे बढ़कर


सबसे ज्यादा दी थी कुर्बानियाँ


वे प्रजा थी


आम सैनिक थे


सेवक थे


वे तब भी


मंच के नीचे थे


और आज भी नीचे ही हैं


विभिन्न शिलाओं और इतिहास के पन्नों पर


उनके नाम


न तब थे


न अब हैं। 


 


@दीपक शर्मा


जौनपुर उत्तर प्रदेश


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