*चतुर्थ चरण*(श्रीरामचरितबखान)-3
मैं सेवक प्रभु मोरा स्वामी।
पद-सरोज कै मैं अनुगामी।।
सेवक कै स्वामी आधारा।
सुतहिं क जस जग मातु सहारा।।
अस सुनि बचन राम भगवाना।
तुरत लगाए उर हनुमाना ।।
कहे सुनहु मम प्रिय हनुमाना।
तुम्हतें अधिक न अनुजहिं जाना।।
समदरसी मोंहे सभ कहहीं।
पर अति प्रिय मम सेवक रहहीं।।
लखि अति मुदित राम सन्मुखहीं।
हनूमान तब सादर कहहीं ।।
दूर सिखर-गिरि कपि-पति रहई।
नाम सुग्रीव दास तव अहई ।।
तेहिं सँग प्रभु अब करउ मिताई।
सो माता सिय पता लगाई ।।
भेजि कपिन्ह कहँ कोटिक इत-उत।
अवसि बताई सिय रहँ दिसि कुत।।
अस बताइ चढ़ाइ निज पीठहिं।
पहँ गे हनू सुग्रीवहिं डीठहिं।।
लखि के राम-लखन-सिय आवत।
कपि-पति गयो तुरत तहँ धावत।।
झट कपीस प्रनमहिं रघुनाथा।
पुलकित तन झुकाइ निज माथा।।
भेंटा लखन सहित प्रभु रामा।
सादर बहु सनेह निज धामा।।
दोहा-तब हनुमत दोउ पच्छ कै, कथा कहेउ समुझाइ।
प्रीति-रज्जु बाँधे तिनहिं,पावक पाक जराइ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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