डॉ. हरि नाथ मिश्र

*चतुर्थ चरण*(श्रीरामचरितबखान)-3


मैं सेवक प्रभु मोरा स्वामी।


पद-सरोज कै मैं अनुगामी।।


   सेवक कै स्वामी आधारा।


   सुतहिं क जस जग मातु सहारा।।


अस सुनि बचन राम भगवाना।


तुरत लगाए उर हनुमाना ।।


      कहे सुनहु मम प्रिय हनुमाना।


       तुम्हतें अधिक न अनुजहिं जाना।।


समदरसी मोंहे सभ कहहीं।


पर अति प्रिय मम सेवक रहहीं।।


      लखि अति मुदित राम सन्मुखहीं।


      हनूमान तब सादर कहहीं ।।


दूर सिखर-गिरि कपि-पति रहई।


नाम सुग्रीव दास तव अहई ।।


    तेहिं सँग प्रभु अब करउ मिताई।


    सो माता सिय पता लगाई ।।


भेजि कपिन्ह कहँ कोटिक इत-उत।


अवसि बताई सिय रहँ दिसि कुत।।


     अस बताइ चढ़ाइ निज पीठहिं।


      पहँ गे हनू सुग्रीवहिं डीठहिं।।


लखि के राम-लखन-सिय आवत।


कपि-पति गयो तुरत तहँ धावत।।


      झट कपीस प्रनमहिं रघुनाथा।


      पुलकित तन झुकाइ निज माथा।।


भेंटा लखन सहित प्रभु रामा।


सादर बहु सनेह निज धामा।।


दोहा-तब हनुमत दोउ पच्छ कै, कथा कहेउ समुझाइ।


        प्रीति-रज्जु बाँधे तिनहिं,पावक पाक जराइ।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


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