डॉ. हरि नाथ मिश्र

*वाणी*(दोहे)


वाणी से व्यक्तित्व की,होती है पहचान।


मीठी वाणी अमिय सम,कड़वी सर-संधान।।


 


गरल-कलश हिय में धरे,दुर्जन बोले बोल।


मधु वाणी के शस्त्र से,हते प्राण अनमोल।।


 


ज्ञानी-सज्जन-संत के,सीधे-मीठे बोल।


दुष्ट-हठी-इर्ष्यालु जग,बोलें गोल-मटोल।।


 


वाणी से ही मनुज का,है जग पर अधिकार।


श्रेष्ठ सृजन यह सृष्टि का,है वाणी-उपकार।।


 


वाणी से ये वेद हैं,गीता-शबद-क़ुरान।


वाणी से यह बाइबिल,देती सबको ज्ञान।।


 


वाणी ब्रह्म-स्वरूप है,संस्कृति का आधार।


विद्या देवी मातु को,ज्ञापित है आभार।।


 


मधुर वचन से सुख मिले,मिले सदा संतोष।


घटे सकल धन पर यही,जीवन-अक्षुण कोष।।


            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                9919446372


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