*अन्नदाता किसान*
हे हलधर,हे अवनि-पुत्र तुम,
लगते कितने प्यारे हो।
दाता अन्न मात्र एक तुम,
सबके तुम्हीं सहारे हो।।
ले हल संग वृषभ की जोड़ी,
रोज खेत पर जाते हो।
शरद-गरम या हों बरसातें,
हिकभर फसल उगाते हो।
सना बदन कीचड़ में तेरा-
फिर भी महि के तारे हो।।
हर मौसम से तेरी यारी,
यारी है तूफानों से।
बिगड़े बोल भले हों इनके,
डरे न उर्मि-उफ़ानों से।
सदैव परिश्रम करते रहते-
श्रम के तुम्हीं दुलारे हो।।
छोटे हो या बड़े कृषक तुम,
श्लाघनीय तेरा प्रयास।
निशि-दिन श्रम कर भूख मिटाते,
हिय में सदा भरे हुलास।
हर युग के तुम पूजनीय हो-
कवि-हिय के तुम प्यारे हो।।
तुम प्रणम्य-नमनीय सभी के,
वंदन तेरा करते हम।
क्षुधा-पीर के तुम्हीं निवारक,
अर्चन तेरा करते हम।
होगा कोई देव गगन में-
पर तुम देव हमारे हो।
दाता अन्न मात्र एक तुम,सबके तुम्हीं सहारे हो।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र।
9919446372
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