*ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4
बाबा नंद सकल ब्रजबासी।
होइ इकत्रित सबहिं उलासी।।
आपसु मा मिलि करैं बिचारा।
भवा रहा जे अत्याचारा।।
ब्रज के महाबनय के अंदर।
इक-इक तहँ उत्पात भयंकर।।
गोपी एक रहा उपनंदा।
जरठ-अनुभवी मीतइ नंदा।।
कह बलराम-किसुन सभ लइका।
खेलैं-कूदें नहिं डरि-डरि का ।।
यहि कारन बन तजि सभ चलऊ।
कउनउ अउर जगह सभ रहऊ।।
सुधि सभ करउ पूतना-करनी।
उलटि गयी लढ़ीया यहि धरनी।।
अवा बवंडर धारी दइता।
उड़ा गगन मा किसुनहिं सहिता।।
पुनि यमलार्जुन तरु महँ फँसई।
सिसू किसुन आपुनो कन्हई।।
बड़-बड़ पून्य अहहि कुल-देवा।
किसुनहिं बचा असीषहिं लेवा।।
करउ न देर चलउ बृंदाबन।
बछरू-गाइ समेतहिं बन-ठन।।
हरा-भरा बन बृंदाबनयी।
पर्बत-घास-बनस्पति उँहयी।।
बछरू-गाइ सकल पसु हमरे।
चरि-चरि घास उछरिहैं सगरे।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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