डॉ. हरि नाथ मिश्र

*देवी माँ का वंदन*(दोहे)


माता के नौ रूप हैं,नौ ही हैं घट-द्वार।


पाकर माँ-आशीष ही,कटता कष्ट अपार।।


 


विमल हृदय से यदि करें,माता का सम्मान।


निश्चित सुख-वैभव मिले, रहे सुरक्षित मान।।


 


दोनों ही नवरात्रि में,होता प्रकट स्वरूप।


विधिवत व्रत-पूजा करें,दर्शन मिले अनूप।।


 


माता परम कृपालु हैं,अमित प्रेम का कोष।


पाकर आशीर्वाद ही,मिले हृदय को तोष।।


 


धन्य-धन्य माँ हो तुम्हीं, ममता का भंडार।


करो कृपा हे मातु तुम,देकर अपना प्यार।।


 


है पुकारता भक्त तव,आरत वचन उचार।


माता आओ द्वार मम,करो कष्ट-उपचार।।


 


सकल सृष्टि की धारिणी,सकल सृष्टि का स्रोत।


पा प्रकाश तेरा जलें, रवि-शशि ये खद्योत।।


          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


            9919446372


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...