डॉ. हरि नाथ मिश्र

*ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-3


पुनि-पुनि कहैं जसोदा मैया।


हे बलदाऊ-किसुन कन्हैया।।


    पंकज नयन कृष्न-बलरामा।


    सुंदर गात स्याम बलधामा।।


हे बलराम तुमहिं सभ थकिगे।


खेलत खेल कलेवा पचिगे ।।


     बाबा नंद तुमहिं सभ जोहहिं।


     बिनू तुमहिं सभ भोज न होवहिं।।


कहतै अस जसुमति-स्तन मा।


उतरा दूध भाव बत्सल मा ।।


    पुनि कह जसुमति आउ तुमहिं सभ।


    आइ अनंदित करउ हमहिं सभ।।


धूल-धूसरित भे सभ अंगा।


निज तन करउ नहाइ सढंगा।।


     अहइ आजु तव जनम-नछत्रा।


     दान द्विजहिं करु होइ पवित्रा।।


मज्जन करि खा-पी तव मीता।


भूसन-बसनहिं पहिरि अभीता।।


    खेलहिं इहवाँ धाई-धाई।


    मीजि-पोंछि भेजीं तिन्ह माई।।


तुमहुँ करउ मज्जन-स्नाना।


भूसन-बसन पहिनि खा खाना।।


    आइ इहाँ पे खेलउ धाई।


    कहना मानउ सुनहु कन्हाई।।


अस कहि मातु जसोदा जाई।


हाथ पकरि बलराम-कन्हाई।।


     लाइ तुरत तिनहीं निज गेहा।


      पुत्रन्ह दीन्ह सकल सुख-नेहा।।


दोहा-अह जे रच्छक सकल जग,जसुमति रच्छक तासु।


        लीला धनि-धनि तव प्रभू,होय न मन बिस्वासु।।


                     डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                      9919446372


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