*ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-3
पुनि-पुनि कहैं जसोदा मैया।
हे बलदाऊ-किसुन कन्हैया।।
पंकज नयन कृष्न-बलरामा।
सुंदर गात स्याम बलधामा।।
हे बलराम तुमहिं सभ थकिगे।
खेलत खेल कलेवा पचिगे ।।
बाबा नंद तुमहिं सभ जोहहिं।
बिनू तुमहिं सभ भोज न होवहिं।।
कहतै अस जसुमति-स्तन मा।
उतरा दूध भाव बत्सल मा ।।
पुनि कह जसुमति आउ तुमहिं सभ।
आइ अनंदित करउ हमहिं सभ।।
धूल-धूसरित भे सभ अंगा।
निज तन करउ नहाइ सढंगा।।
अहइ आजु तव जनम-नछत्रा।
दान द्विजहिं करु होइ पवित्रा।।
मज्जन करि खा-पी तव मीता।
भूसन-बसनहिं पहिरि अभीता।।
खेलहिं इहवाँ धाई-धाई।
मीजि-पोंछि भेजीं तिन्ह माई।।
तुमहुँ करउ मज्जन-स्नाना।
भूसन-बसन पहिनि खा खाना।।
आइ इहाँ पे खेलउ धाई।
कहना मानउ सुनहु कन्हाई।।
अस कहि मातु जसोदा जाई।
हाथ पकरि बलराम-कन्हाई।।
लाइ तुरत तिनहीं निज गेहा।
पुत्रन्ह दीन्ह सकल सुख-नेहा।।
दोहा-अह जे रच्छक सकल जग,जसुमति रच्छक तासु।
लीला धनि-धनि तव प्रभू,होय न मन बिस्वासु।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र।
9919446372
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