*चेतना जागे*
करो उपाय कुछ ऐसी प्रियवर जगे चेतना तेरी,
छड़भंगुर यह दुनिया प्यारे,नहीं है तेरी-मेरी।।
ऊँच-नीच के भाव को त्यागो जब-तक जीवन जग में,
मानवता का दीप जलाओ,भगे यह रात अँधेरी।।
असहायों की मदद ही करना,एकमात्र उद्देश्य रहे,
इसी सोच से भाग है जाती,विपदा जो है घनेरी।।
परोपकार का भाव हृदय में,यदि रहता है पलता,
जीवन-दर्शन इसी को मानो,संकट-निशा हो चेरी।।
जगा चेतना रच दो प्रियवर,एक नया इतिहास यहाँ,
नवल दीप की ज्योति यहीअब,लेगी नित-नित फेरी।।
जगी चेतना लिए प्रभात नव,देगी ज्ञान-मार्ग नित नव,
राही चलकर उसी मार्ग पर,सुनेगा मधु आनंद की भेरी।।
यही सदा से स्वप्न रहा है,हो विकसित शुचि सोच नयी,
नयी सोच का राष्ट्र हो निर्मित,बिना विलंब कुछ देरी।।
"©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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