मेरा मन
टूटता हुआ नभ का तारा नहीं,
मायूस हो,ग़म का मारा नहीं।
मेरा मन तो पंछी जो उड़ता फिरे-
बाँटता दर्दे दुनिया,आवारा नहीं।।
जा के गाँवों -सिवानों में घूमे-फिरे,
पेड़-पौधों की भाषा को समझा करे।
कह दे,नदिया की धारा को पहचान कर-
ज़िंदगी जीत है,कभी हारा नहीं।।
जश्न हैं ग़म-खुशी दोनों इसके लिए,
रिश्ता-याराना सुख और दुख से भी है।
मील के पत्थरों को ये गिनता नहीं-
चल दिया,मुड़ के पीछे निहारा नहीं।।
चाँदनी की उजाले भरी रात हो,
या अमावस का गाढ़ा अँधेरा रहे।
लक्ष्य साधे बिना ये तो लौटे नहीं-
लक्ष्य इसका,नदी का किनारा नहीं।।
सफलता-विफलता को समझे बिना,
लाभ औ हानि का क्या गुणा- भाग है?
मन मेरा कर्म करता सदा ही रहे-
कर्म-फल लक्ष्य इसका तो सारा नहीं।।
ऐसा भी नहीं कि कभी थकता नहीं,
देवता भी नहीं जो सिसकता नहीं।
थकना-सिसकना है फ़ितरत में इसकी-
ये मरता तो है, कभी मारा नहीं ।।
मकसदे ज़िंदगी तो रहम करना है,
मज़लूम की ही मदद करना है।
होती दीनों की सेवा ही शाने ख़ुदा-
जन्म लेना हो शायद दोबारा नहीं।।
© डॉ. हरि नाथ मिश्र
9919446372
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