डॉ. हरि नाथ मिश्र

बेवफ़ाई 


इन्होंने चुरायी हैं नज़रें जो मुझसे,


मेरा गीत कोई न इनके लिए है।


इन्हें न मयस्सर हो ग़ज़ले मोहब्बत-


न संगीत कोई अब इनके लिए है।। इन्होंने चुरायी....


      इन्हें अब न कहना कि ये महज़बीं हैं,


      इन्हीं की बदौलत ये मौसम हसीं है।


       ये तो जाने नहीं गुलो-गुलशन की कीमत-


       गुलों की मोहब्बत न इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी..


कोई जा के कह दे बहारों से इतना,


कि बागों में फूलों को खिलने न दें वो।


इन्हें कर दो महरूम बहारों की ऋतु से-


बहारों की महफ़िल न इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी....


       कोई फ़र्क पड़ता नहीं बादलों से,


       चाँद-तारे हमेशा रहेंगे जवाँ।


       छीन लो इनसे इनकी जवाँ चाँदनी-


       चाँदनी की चमक अब न इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी हैं नज़रें जो मुझसे....।।


   बेवफ़ाई किया है इन्होंने सुनो,


  सिला बेवफ़ाई का इनको मिले।


 चैन इनको मिले न कभी ऐ ख़ुदा!


मीत की प्रीति जग में न इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी हैं....।।,


                            ©डॉ. हरि नाथ मिश्र


                              9919446372


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