डॉ. निर्मला शर्मा

" मंगलसूत्र के बिखरे मोती"


विकल हिरनी सी


विस्फारित सी अखियाँ उसकी


शून्य मैं ताकती वह सौभाग्यशालिनी


अश्रुओं की कपोलों पर बहती धारा


चीत्कार करता हृदय को भेदता 


उसका आर्त करूण स्वर


हे गिरधारी, मनमोहन, चक्रधारी


अब तो आओ बचाओ लाज हमारी


पुकारती है दौपदी--------


वो है निःसहाय,लाचार


भरी है वीरों से राजसभा


पाँच शूरवीरों की वह कांता


 यज्ञ वेदी से उत्पन्न बनी आक्रांता


देव प्रसाद सी वह कोमलांगी


हारी वह सबको दे- दे पुकार


सभा बनी बैठी है बुत सी


मौन बैठा है सारा संसार


वह तेजस्विनी, स्वाभिमानिनी


तीव्र महत्वाकांक्षाओं की


 अग्नि मैं जलकर


बनी वह प्रलयंकर दामिनी


खींच लाया उसे वो पशुवत


दुश्शासन पापी केशों को पकड़


टूट कर बिखर गए काले मोती


सुहागचिन्ह के अनमोल मोती


धैर्य, प्रेम, वीरता, कोमलता, लज्जा


की टूटी डोर


खन खन कर छिटके इधर-उधर


टूटा रक्षा का वचन सूत्र


किया गया उसका मान-मर्दन


समेट अपने वस्त्र छिटककर केश


मंगलसूत्र के पवित्र मोतियों को समेट


किया अट्टहास सभा मैं---------


पवित्रता भंग करने का ये घृणित प्रयास


हुआ जिस क्षत्रियों की सभा मैं


करती हूँ मैं इस सभा का परिहास


बिखरे मोतियों को जोड़


पुनः बनाकर पवित्र मंगलसूत्र


जला अपमान की धधकती ज्वाला


खुले केश और प्रतिशोध का सूत्र बना


शूरवीरों की वह भार्या


चली है सतीत्व का तेज दिखाने


पापियों को


देने दण्ड उनके अक्षम्य अपराध का


वह परम सती ,पवित्रात्मा


मंगलसूत्र की यशगाथा से


नवीन महाभारत रचने।


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा, राजस्थान


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