डॉ राजीव पाण्डेय

कुछ घटनाएं झकझोर देती हैं


हैवानियत के दरिंदे इंसानियत को शर्मसार करते हैं।


मेरी काव्यात्मक प्रतिक्रिया इस कविता के माध्यम से देखिए


 


कुछ भँवरों की शैतानी ने,मसली एक कली।


इसीलिए अब फूट फूट कर, रोती गली गली।


 


झीलें पोखर,नदियों तक के,आँसू सूख गए।


सहमे सहमे बाग बगीचे, हँसना भूल गए।


रो रोकर धरती अम्बर ने,अपनी आँख मली।


 


घर आँगन का एक खिलौना, सम्मुख टूट गया,


सहमे सहमे हर कोने का ,सपना रूठ गया,


देखो कोयल भी कागा से,फिर से गयी छली।


 


चिड़ियों के कलरव में छाया, देखो सूनापन,


नन्ही परियों के पँखों को , नोचें अपनापन,


घात लगी हो अंकुर पर जब,फूले नहीं फली।


 


झुकीं झुकीं तरुवर की डालें,करतीं रुदन मिलीं,


अंग भंग वालीं कलियां भी ,देखीं कहाँ खिलीं,


मृतक कपोलों पर है अंकित, न बच पाये अली।


 


 डॉ राजीव पाण्डेय


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