डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 शोकाकूल स्तब्ध हूँ


 


निःशब्द मौन शोकाकूल स्तब्ध हूँ,


क्रन्दित मन शर्मसार प्रश्नचिह्न हू्ँ।


खो मनुजता कुकर्मी बस दंश बन,


क्या कहूँ ,कातिल ,पापी बहसीपन।


 


सोच विकृत घिनौनी चरित दानवी,


बलि चढ़ी पुनः दुष्कर्म पथ मानवी।


मर्यादाएँ क्षतविक्षत मूल्य नैतिक,


निर्लज्जता तोड़ सीमा निर्बाध रथ।


 


छलनी लज्जिता सरे आम अस्मिता,


श्रद्धा लज्जा फिर विलोपित दनुजता।


दरिंदगी बलवती फिर अय्याश पथ,


बेहया पापी घृणित दुष्काम निरत।


 


बन निशाचर बेख़ौप स्वयं मौत से,


बदतर आदमख़ोर जंगली पशु से।


कुलांगार माँ कोख़ करता कलंकित,


विक्षिप्त मानस चित्त दानव दुश्चरित।


 


निडर खल दुस्साहसी फाँसी मिले,


दुर्मति बिन विवेक जग उपहासी बने।


नोंचने नार्य अस्मिता नित गिद्ध बन,


पर दरिंदे पहचानना है कठिन।


 


जनता प्रशासन सजग नित सक्रिय रहे, 


प्रशासनिक दण्ड का भय खल मन जगे।


इच्छाशक्ति हो परपीडना निदान मन,


बहु बेटियाँ सबला बने शक्ति बहन।


 


नारी सुरक्षा प्रश्न है बस देश में,


दनुज दरिंदो को पकड़ बस भून दें।


राजनीति छींटाकशी अस्मित हरण,


तजें, मिल सोचें सभी बस निराकरण।


 


मानवीय संवेदना नैतिक पतन,


शिक्षा मिले नारी महत्त्व बालपन।


शील गुण .सद्कर्म पथ इन्सानीयत,


माँ बहन बेटी बहू हो अहमीयत।


 


कठोरतम दण्डविधान दुष्कर्म हो,


देख औरों पापी जन रूहें कँपे।


सम्बल योजना हो नारी सुरक्षा,


हो निडर तनया शिक्षिता मन आस्था।


 


 डॉ. राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


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