डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

दिनांकः १०.१०.२०२०


दिवसः शनिवार


छन्दः मात्रिक


विधाः दोहा 


शीर्षकः ,🌅नयी भोर नव आश मन🇮🇳


 


नई भोर नव आश मन , नव अरुणिम आकाश। 


मिटे मनुज मन द्वेष तम , मधुरिम प्रीति प्रकाश।।१।।


 


मार काट व्यभिचार चहुँ , जाति धर्म का खेल।


फँसी सियासी दाँव में , हुई मीडिया फ़ेल।।२।।


 


अनुशासन की नित कमी , लोभ घृणा उत्थान।


प्रतीकार में जल रहा , शैतानी हैवान।।३।।


 


मिटी आज सम्वेदना , दया धर्म आचार।


कहाँ त्याग परमार्थ जग , पाएँ करुणाधार।।४।।


 


सत्ता के मद मोह में , अनाचार सरकार।


मार रही है साधु को , पाती जन धिक्कार।।५।।


 


बँटी हुई है मीडिया , लोकतंत्र आवाज़।


बेच आज निजअस्मिता,फँस लालच बिन लाज।।६।।


 


कौन दिखाए सत्य को , जगाए जनता कौन।


जाति धर्म फँस मीडिया ,चतुर्थ आँख जब मौन।।७।।


 


अद्भुत भारत अवदशा , अद्भुत जनता देश।


तुली तोड़ने देश को , कोप लोभ खल वेश।।८।।


 


नश्वर तन है जानता , नश्वर भौतिक साज।


फिर भी पापी जग मनुज ,चाहत धन सरताज।।९।।


 


स्वार्थ पूर्ति में देश को , तोड़ रहा इन्सान।


रिश्ते नाते सब भुले , देश धर्म सम्मान।।१०।।


 


आहत है माँ भारती ,लज्ज़ित है निज जात।


पा कुपूत चिर हरण निज , अश्रु नैन पछतात।।११।।


 


लज्जित हैं पूर्वज वतन , देख वतन गद्दार।


पछताती कुर्बानियाँ , भारतार्थ उद्धार।।१२।।


 


कामुक लोभी कपट जन , देश द्रोह नासूर।


विध्वंसक ये देश के , दुष्कर्मी नित क्रूर।।१३।।


 


आवश्यक जन जागरण , दर्शन नव पुरुषार्थ।


नैतिक शिक्षा हो पुनः, भरें भाव परमार्थ।।१४।।


 


त्याग शील मानव हृदय , दें बचपन उपदेश।


धर्म कर्म सद्ज्ञान दें , भारतीय परिवेश।।१५।।


 


उपकारी अन्तःकरण , राष्ट्र भक्ति मन प्रीति।


राष्ट्र प्रगति हो निज प्रगति , हो शिक्षा नवनीति।।१६।।


 


समरसता सद्भाव मन , बचपन में दें पाठ।


मानवीय अनमोल गुण , संस्कार दें गाँठ ।।१७।।


 


बचपन जब नैतिक सबल, तरुण बने मजबूत।


तब भारत सुख शान्ति हो , युवा देश हों दूत।।१८।।


 


इन्द्रधनुष सतरंग बन , खिले प्रगति अरुणाभ।


खुशियाँ महकेँ कुसुम बन,सुखद शान्ति नीलाभ।।१९।।


 


कवि निकुंज दोहावली , माँग ईश वरदान।


मति विवेक परहित सदय , बने मनुज इन्सान।।२०।।


 


 डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


नई दिल्ली


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