डॉ.राम कुमार झा निकुंज

सप्त दिवस नवरात्रि का , कालरात्रि आह्वान।


भक्ति भाव पूजन करे , प्राप्ति अभय वरदान।।१।।


 


गंगाजल अक्षत कुसुम , पंचामृत सह गन्ध।


कालरात्रि पूजा करें , कटे आपदा बन्ध।।२।।


 


कालरात्रि माँ कालिका , भैरवि काल कपाल।


रौद्री चंडी चण्डिका , चामुण्डा विकराल।।३।।


 


श्यामा तारा भाविनी , रिद्धि सिद्धि दे योग।


मुण्डमाल बिजुरी समा , प्रिय काली गुड़ भोग।।४।।


 


महा काली कपालिनी , भद्रकाली सुनाम।


ग्रह बाधा से मुक्त हों , हो जीवन सुखधाम।।५।।


 


अर्द्धरात्रि पूजन करें , माँ काली तम रूप।


रोग शोक सब पाप मन , मिटे क्रोध मन कूप।।६।।


 


रक्तबीज शोणित हरे , चण्ड मुण्ड संहार ।


चामुण्डा जग में विदित , रुद्राणी अवतार ।।७।।


 


असुर निकन्दनी कालिके , गोलाकार कपाल।


आलोकित ब्रह्माण्ड सम , भाल त्रिनेत्र विशाल।।८।।


 


खड्गधारिणी चण्डिके, धरे हाथ लौहास्त्र।


अभय मुद्रा में भगवति , वरमुद्रा ब्रह्मास्त्र।।९।।


 


पूर्ण सकल अभिलाष मन,भज काली जगदम्ब।


सप्त रूप माँ कालिके , दुर्गा जग अवलम्ब।।१०।।


 


कर निकुंज अभिराम माँ , हरो सकल संताप।


भक्ति प्रीति समरस वतन, बाँटों नेह प्रसाद।।११।।


 


कालरात्रि माँ कालिके , महिमा अपरम्पार।


महाशक्ति बदलामुखी , कृपा सिन्धु आगार।।१२।।


 


कविः डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


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