सप्त दिवस नवरात्रि का , कालरात्रि आह्वान।
भक्ति भाव पूजन करे , प्राप्ति अभय वरदान।।१।।
गंगाजल अक्षत कुसुम , पंचामृत सह गन्ध।
कालरात्रि पूजा करें , कटे आपदा बन्ध।।२।।
कालरात्रि माँ कालिका , भैरवि काल कपाल।
रौद्री चंडी चण्डिका , चामुण्डा विकराल।।३।।
श्यामा तारा भाविनी , रिद्धि सिद्धि दे योग।
मुण्डमाल बिजुरी समा , प्रिय काली गुड़ भोग।।४।।
महा काली कपालिनी , भद्रकाली सुनाम।
ग्रह बाधा से मुक्त हों , हो जीवन सुखधाम।।५।।
अर्द्धरात्रि पूजन करें , माँ काली तम रूप।
रोग शोक सब पाप मन , मिटे क्रोध मन कूप।।६।।
रक्तबीज शोणित हरे , चण्ड मुण्ड संहार ।
चामुण्डा जग में विदित , रुद्राणी अवतार ।।७।।
असुर निकन्दनी कालिके , गोलाकार कपाल।
आलोकित ब्रह्माण्ड सम , भाल त्रिनेत्र विशाल।।८।।
खड्गधारिणी चण्डिके, धरे हाथ लौहास्त्र।
अभय मुद्रा में भगवति , वरमुद्रा ब्रह्मास्त्र।।९।।
पूर्ण सकल अभिलाष मन,भज काली जगदम्ब।
सप्त रूप माँ कालिके , दुर्गा जग अवलम्ब।।१०।।
कर निकुंज अभिराम माँ , हरो सकल संताप।
भक्ति प्रीति समरस वतन, बाँटों नेह प्रसाद।।११।।
कालरात्रि माँ कालिके , महिमा अपरम्पार।
महाशक्ति बदलामुखी , कृपा सिन्धु आगार।।१२।।
कविः डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
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