डॉ.राम कुमार झा "निकुंज

दिनांकः ०५.१०.२०२०


दिवसः सोमवार


विधाः कविता (गीत)


विषयः अभिलाषा 


शीर्षकः नव आशा जन अभिलाषा दूँ


 


अभिलाषा बस जीवन जीऊँ,


भारत माँ का पद रज लेपूँ।


जीवन का सर्वस्व लुटाकर,


मातृभूमि जयकार लगाऊँ।


 


चहुँदिशि विकास अभिलाष करूँ,


सौ जनम वतन बलि बलि जाऊँ।


जयकार वतन गुनगान सतत,


निर्माण राष्ट्र कर्तव्य निभाऊँ। 


 


नव शौर्य वतन रणविजय बनूँ,


रक्षण सीमा प्रतीकार मरूँ।


समशान्ति राष्ट्र दूँ महाविजय,


ले ध्वजा तिरंगा शान बनूँ। 


 


गमगीन अधर मुस्कान भरूँ,


क्षुधार्त उदर अन्नपूर्ण करूँ।


तृषार्त कण्ठ दूँ शीतल जल,


शिक्षा रक्षा दे सबल करुँ।


 


जाति धर्म वतन निर्भेद करूँ,


मानवता हित संवेद बनूँ ।


हो मातृशक्ति सबला निर्भय,


सम्मान पूज्य मन नमन करूँ। 


 


कर हरित भरित भू कृषक बनूँ ,


वैज्ञानिक बन नव शोध करूँ।


बन सैन्यबली शत्रुंजय जग ,


सद्भाव मीत नवनीत बनूँ।


 


समता ममता करुणार्द्र बनूँ ,


नित दीन हीन परमार्थ करूँ।


नित त्याग शील गुण वाहक बन,


सत्कर्मरथी पथ सार्थ बनूँ। 


 


नव प्रीति सदय समुदार बनूँ ,


दीनार्त पीड़ उद्धार करूँ।


नित मानसरोवर अवगाहन,


जल क्षीर विवेकी हंस बनूँ।


 


नव सृजन गीति संगीत बनूँ ,


अभिलाष हृदय कवि भाष बनूँ।


नवलेख राष्ट्र उत्थान युवा,


अनमोल कीर्ति नित खुशियाँ दूँ। 


 


नव आशा जन अभिलाषा दूँ,


स्वाधीन तंत्र सुख जनमत दूँ।


संविधान मान निशिवासर जन,


सुख चैन अमन दे मुदित करूँ।


 


उच्छ्वास शुद्ध नव जीवन दूँ,


कुसमित निकुंज सुख सौरभ लूँ।


आरोग्य सृष्टि जग सकल भूत,


अभिलाष वतन निज जीवन दूँ। 


 


कवि✍️ डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


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