हो विजया मानव जगत
सकल मनोरथ पूर्ण हो , सिद्धदातृ मन पूज।
सुख वैभव मुस्कान मुख , खुशियाँ न हो दूज।।१।।
सिद्धिदातृ जगदम्बिके , माँ हैं करुणागार।
मिटे समागत आपदा , जीवन हो उद्धार।।२।।
सिंह वाहिनी खड्गिनी , महिमा अपरम्पार।
माँ दुर्गा नवरूप में , शक्ति प्रीति अवतार।।३।।
खल मद दानव घातिनी , करे भक्त कल्याण।
कर धर्म शान्ति स्थापना , सब पापों से त्राण।।४।।
श्रद्धा मन पूजन करे , माँ गौरी अविराम।
रिद्धि सिद्धि अभिलाष जो , पूरा हो सत्काम।।५।।
विजय मिले सद्मार्ग में , करे मनसि माँ भक्ति।
लक्ष्मी वाणी साथ में , माँ दुर्गा दे शक्ति।।६।।
जन सेवा परमार्थ मन , भक्ति प्रेम हो देश।
सिद्धिदातृ अरुणिम कृपा , प्रीति अमन संदेश।।७।।
हो विजया मानव जगत,समरस नैतिक मूल्य।
मानवीय संवेदना , जीवन कीर्ति अतुल्य।।८।।
कलुषित मन रावण जले , हो नारी सम्मान।
धर्म त्याग आचार जग , वसुधा बन्धु समान।।९।।
बरसे लक्ष्मी की कृपा , सरस्वती वरदान।
माँ काली नवशक्ति दे , देशभक्ति सम्मान।।१०।।
पुष्पित हो फिर से निकुंज , प्रकृति मातु आनन्द।
चहुँदिशि हो युवजन प्रगति,सुरभित मन मकरन्द।।११।।
विजयादशमी सिद्धि दे , मिटे त्रिविध संताप।
हर दुर्गा कात्यायनी , कोरोना अभिशाप।।१२।।
डॉ.राम कुमार झा निकुंज
नई दिल्ली
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