करो नाश खल ख़ुशियाँ भर दे
महागौरी दुर्गतिनाशिनी
नवदुर्गे जय कालविनाशिनि।
सकल पाप जग हर अवलम्बे,
हर मानस कल्मष जगदम्बे।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दात्री,
सती रुद्राणी शिवा भवानी।
महातिमिर हर मातु शारदे,
भवसागर से हमें तार दे।
देवासुर मानव नित पूज्या,
हिमकन्या जगजननी रम्या।
रोग शोक जग मोह मिटा दे,
भक्ति प्रेम स्वराष्ट्र जगा दे।
जगतारिणि अम्बे माँ गौरी,
ममता समता माँ कल्याणी।
कोरोना जग व्याधि मिटा दे,
विधिलेख चारु सृष्टि बचा दे।
करुणामयि माता मातंगी,
महाकाल काली कपालिनी।
दीन धनी जग भेद मिटा दे,
जाति धर्म समरसता ला दे।
हरिप्रिये पद्मासन लक्ष्मी,
आदिशक्ति नवधा भुवनेशी।
भूख प्यास हरो अन्नपूर्णे,
शोक नैन आतप सम्पूर्णे।
महाशक्ति विप्लव भयाविनी,
दुष्कर्मी खल बन डरावनी।
लज्जे श्रद्धे चिन्ते मुग्धे,
नारी सबला निर्भय कर दे।
भुवनेश्वरि चामुण्डघातिनी,
धूम्र अरि रक्तबीज घातिनी।
भ्रमित देश द्रोही बहुतेरे,
करो नाश खल खुशियाँ भर दे।
भव्या प्रौढा विश्व मोहिनी,
कमला गंगा मातु रोहिणी।
हिंसा रत छल कपटी हर ले,
मुस्कान अधर जीवनरस भर दे।
मातु वैष्णवी जय ब्रह्माणी,
इन्द्राणी जय तारा रानी।
परार्थ मन्त्र जन रव स्वतंत्र दे,
धीर वीर गंभीर तन्त्र दे।
जयन्ती मंगला कल्याणी,
त्रिपुरसुन्दरी राधा रानी।
खिली प्रकृति यश चारु सुरभि दे,
शस्यश्यामला वसुधा कर दे।
नवदुर्गे त्रिनेत्र त्रिलोकी,
सर्जन पालन हन्त्री जग की।
रख लाज तिरंगा मान वतन दे,
नव जोश होश बल सेना दे।
स्वधा स्वाहा रिद्धि नारायणी,
क्षमा शिवा धात्री कात्यायनि।
शान्ति सुखद समभाव प्रगति दे,
विज्ञान शोध सुबुद्धि स्वस्ति दे।
देवी अष्टमी महा गौरी,
रिद्धि सिद्धि दात्री भयहारी।
जय विजया अनमोल कीर्ति दे,
चन्द्र प्रभा मृदुता मन भर दे।।
कवि✍️ डॉ.राम कुमार झा निकुंज
नई दिल्ली
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