डॉ. राम कुमार झा निकुंज

दिनांकः १४.१०.२०२०


दिवसः बुधवार


छन्दः मात्रिक


विधाः दोहा


विषयः होठों पर मुस्कान


शीर्षकः मुस्कान


 


जठरानल में अन्न हो , होठों . पर मुस्कान।


सबके तन पर हो वसन , सबके पास मकान।।१।।


 


धन वैभव सुख इज्जतें , सबको सदा नसीब।


सभी बने शिक्षित सबल , सोचे नव तरकीब।।२।।


 


सर्व समाज नित प्रगति हो , खुशियाँ मिले अपार।


दीन हीन अरु पददलित , हो जीवन उद्धार।।३।।


 


न्याय व्यवस्था आम जन , मानक शिक्षा नीति।


ऊँच नीच दुर्भाव मन , मिटे मिलें सब प्रीति।।४।।


 


जाति धर्म को सब तजे , मानवता हो गान।


सदाचार नैतिक सभी , सबको दें सम्मान।।५।।


 


सब सबकी चाहें भला , रखें भाव परमार्थ।


रोग विरत मानस विमल , हो चिन्तन आधार।।६।।


 


हो सुभाष नव पल्लवित ,कोमल रस मकरन्द।


पाएँ मन संतोष सब , कुसमित मुख आनन्द।।७।।


 


समरस मन संचार जन , भाव हृदय सहयोग।


खिले बेटियाँ मुख कमल , अभय सबल मनयोग।।८।।


 


जनता मन विश्वास तब , हो शासक ईमान।


चहुँदिशि जब सुख शान्ति हो,खिले खुशी मुस्कान।।९।।


 


सदा पूज्य मेधा बने , बिना जाति मन भेद।


जीने का अधिकार सब , हो घृणा कपट उच्छेद।।१०।।


 


मधुरिम वेला अरुणिमा , सब हों देश समान।


कीर्ति कुमुद मुस्कान नव , हो जीवन संधान।।११।।


 


सदा समुन्नत जन वतन , तभी समुन्नत देश।


शौर्य कीर्ति सम्मान हो , शान्ति सुखद परिवेश।।१२।।


 


आपस में सद्भावना , मिलकर चलें विकास।


मधु माधव मुस्कान जग , फैले सुखद सुवास।।१३।।


 


तभी सफल कवि कामिनी, पाठक मन उल्लास।


अलंकार ध्वनि नवरसा , रीति प्रीति गुण हास।।१४।।


 


शब्द अर्थ कवि कल्पना , सर्जन कृति सम्मान।


दर्शक पाठक कर श्रवण , दिखे ओष्ठ मुस्कान।।१५।।


 


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


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