दिनांकः १४.१०.२०२०
दिवसः बुधवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
विषयः होठों पर मुस्कान
शीर्षकः मुस्कान
जठरानल में अन्न हो , होठों . पर मुस्कान।
सबके तन पर हो वसन , सबके पास मकान।।१।।
धन वैभव सुख इज्जतें , सबको सदा नसीब।
सभी बने शिक्षित सबल , सोचे नव तरकीब।।२।।
सर्व समाज नित प्रगति हो , खुशियाँ मिले अपार।
दीन हीन अरु पददलित , हो जीवन उद्धार।।३।।
न्याय व्यवस्था आम जन , मानक शिक्षा नीति।
ऊँच नीच दुर्भाव मन , मिटे मिलें सब प्रीति।।४।।
जाति धर्म को सब तजे , मानवता हो गान।
सदाचार नैतिक सभी , सबको दें सम्मान।।५।।
सब सबकी चाहें भला , रखें भाव परमार्थ।
रोग विरत मानस विमल , हो चिन्तन आधार।।६।।
हो सुभाष नव पल्लवित ,कोमल रस मकरन्द।
पाएँ मन संतोष सब , कुसमित मुख आनन्द।।७।।
समरस मन संचार जन , भाव हृदय सहयोग।
खिले बेटियाँ मुख कमल , अभय सबल मनयोग।।८।।
जनता मन विश्वास तब , हो शासक ईमान।
चहुँदिशि जब सुख शान्ति हो,खिले खुशी मुस्कान।।९।।
सदा पूज्य मेधा बने , बिना जाति मन भेद।
जीने का अधिकार सब , हो घृणा कपट उच्छेद।।१०।।
मधुरिम वेला अरुणिमा , सब हों देश समान।
कीर्ति कुमुद मुस्कान नव , हो जीवन संधान।।११।।
सदा समुन्नत जन वतन , तभी समुन्नत देश।
शौर्य कीर्ति सम्मान हो , शान्ति सुखद परिवेश।।१२।।
आपस में सद्भावना , मिलकर चलें विकास।
मधु माधव मुस्कान जग , फैले सुखद सुवास।।१३।।
तभी सफल कवि कामिनी, पाठक मन उल्लास।
अलंकार ध्वनि नवरसा , रीति प्रीति गुण हास।।१४।।
शब्द अर्थ कवि कल्पना , सर्जन कृति सम्मान।
दर्शक पाठक कर श्रवण , दिखे ओष्ठ मुस्कान।।१५।।
कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें