नारी!तू ही मातृ स्वरूपा
नारी!तू ही मातृ स्वरूपा।
अखिल लोकमय दिव्य अनूपा।।
तुम्हीं जगत की करत सर्जना।
भाग्यदायिनी लक्ष्मी रूपा।।
पालनकर्त्ता महा वैष्णवी।
क्षीरसागरे विष्णु स्वरूपा।।
तुम कैलाश पर्व पर्वत पर।
उमा शिवा शिवधरी स्वरूपा।।
गर्भधारिणी पयस्विनी प्रिय।
दुग्धदानमय प्रीति स्वरूपा।।
परम विरंचि ब्रह्म ब्रह्मामय ।
सहज सगुण साकार स्वरूपा।।
तेरी अनुपस्थिति अति खलती।
हर्ष प्रदायिनि प्रेम स्वरूपा।।
पत्नी बहन बेटियाँ सब तुम।
सदा दमकती रत्न स्वरुपा।।
घर की शोभा परम लुभानी।
गृहिणी सकल क्षेत्र अनुरूपा।।
व्रत त्योहारों शुभ कार्यों में।
पूर्ण कार्य पूरक शुभ रूपा।।
बिना तुम्हारे अंधकार जग।
तुम सद्भाव प्रकाश स्वरुपा।।
सभी मंच पर तेरा मंचन ।
तुम्हीं काव्य रस पाठ स्वरुपा।।
रचनाकार परम मधु सलिला।
महा काव्यमय देवि स्वरुपा।।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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