डॉ. रामबली मिश्र

नहीं छोड़ देना


 


नहीं छोड़ देना कभी दिल लगा कर,


नहीं मुँह घुमाना हॄदय में बसा कर।


 


कोमल कली को नहीं तोड़ देना,


इसे चूम लेना गले से लगा कर।


 


 नाजुक बहुत है नहीं चोट देना,


खुशियाँ विखेरो हॄदय में सजा कर।


 


इसे छोड़ कर मत तुम जाना कहीं ,


आँखों में रखना इसे तुम जिला कर।


 


तेरे लिये पुष्प बनने को आतुर,


रखना इसे केश में नित सजा कर।


 


भावुक हृदय को मसलना कभी मत,


दिल से लगाये सदा तुम चला कर।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 


लोक विरुद्धं न करणीयम


 


करना परहित ध्यान।


कभी किसी का अहित न करना।।


 


सच्चरित्र को रक्ष।


चरितामृत बनकर तुम जीना।।


 


थोड़ा ही पर्याप्त।


नहीं अधिक की चोरी करना।।


 


इज्जत है अनमोल।


इज्ज़त की खातिर मर मिटना।।


 


मत करना बकवास।


अच्छी मीठी बातें कहना।।


 


मत रख दूषित भाव।


मन को पावन करते रहना।।


 


छोड़ो सकल विवाद।


शान्तचित्त हो चलते रहना।।


 


झंझट से हो मुक्त।


बना निराला विचरण करना।।


 


दिल को रखना स्वच्छ।


सदा धुलाई करते चलना।।


 


शुद्ध बुद्धि में प्राण।


नियमित हो कर भरते रहना।।


 


हक को कभी न मार।


न्याय पंथ पर चलते रहना।।


 


आँसू सबके पोंछ।


करुणाश्रय बन देते रहना। 


 


संस्था बनो पवित्र।


हर विधि सब की सेवा करना।।


 


मानव बनो महान।


सुंदर मन की रचना करना।।


 


बनो उच्च आदर्श।


सबको प्रेरित करते रहना।।


 


करना नहीं कुकर्म।


नव पीढ़ी को सुंदर गढ़नना।।


 


चोरी करना छोड़।


मेहनत से धन अर्जित करना।।


 


रचनाकर:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 


 


अरमान


 


आये हैं हम पास तुम्हारे,


ले कर के अरमान बहुत से।


साथ खड़े आशा के तारे,


मन में हैं अधिमान बहुत से।


कहने को मन अति व्याकुल है,


हिम्मत नहीं जुटा पाता है।


अकुलाता है बार-बार यह,


पर कुछ बोल नहीं पाता है।


बार-बार इसको समझाता,


कुछ तो कह दो खुद अपने से,


पर यह बना मूक दर्शक सा,


टकराता प्रति पल सपने से ।


सपना इस का बहुत सुहाना,


सपने में सब कह जाता है।


नहीं जुटा पाता यह हिम्मत,


उलझा-उलझा रह जाता है।


अरमानों को ले कर मन में,


ढोता पहुँचा आज यहाँ तक।


आशाओं का जलता दीपक,


जलता रहे न जाने कब तक ?


प्रिये !समझ कर लाचारी को,


 इसको सुंदर सा वर देना।


अपने भावुक स्नेहिल मधुरिम,


भावों को इस में भर देना ।


मत तड़पाना इसे कभी भी,


आया है यह द्वार तुम्हारे ।


बन कर प्यारा मीत मनोरम,


सुन लो इसके दुखड़े सारे।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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