सारांश
जीवन का सारांश यही है,
चलते रहना प्रेम पंथ पर।
अत्युत्तम वाक्यांश यही है,
रखना श्रद्धा सदा संत पर।
सर्वोत्तम पद्यांश यही है,
नाज करो गीता-मानस पर ।
परम अमर दिव्यांश यही है,
अटल प्रेम उर में धारण कर।
अति मोहक ज्ञानांश यही है,
आत्म ज्ञान की सदा राह धर।
सर्व सुलभ सत्यांश यही है,
जीना सीखो सत्य बोल कर।
मनमोहक वेदांश यही है।
निराकार ब्रह्न दर्शन कर।
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मैं फालतू हूँ
मैं भी कितना फालतू हूँ,
अनायास अपेक्षा में जीता हूँ
खुद को तो समझ नहीं पाता
संसार को समझने की इच्छा करता हूँ।
मैं निर्लज्ज हूँ
बेहया, बेशर्म हूँ
समय गवा कर
कुछ नहीं पाता हूँ।
संसार को भूल जाना भी तो
मुमकिन नहीं
पर भुला देना ही ठीक है
इंतजार का क्या मतलब ?
खुद को गले लगाये रहना ही ठीक है।
आत्म में ही जीना सीखें
लोक में आत्म को ही देखें
आत्म ब्राह्मण है
इसमें समा जाना ही सीखें।
निमंत्रण आत्म को ही दें
आत्म का ही इंतजार करें
आत्म धोखेबाज नहीं है
आत्म से ही बोलें।
बाहर तो माया है
कपटी छाया है
दूर रहो
अंतस में ही आत्म की काया है।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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