डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*स्वागतम*


 


आप का आगमन आप का आगमन।


आप का स्वागतम आप का स्वागतम।।


 


आप का है हॄदय से सदा स्वगतम।


आप के आगमन का सदा स्वगतम।।


 


ये हवाएँ फिजायें हैं करती नमन।


आप का स्वगतम आप को नित नमन।।


 


वन्दना गा रही गीत स्वागत का है।


कर रही स्वगतम स्वगतम स्वगतम।।


 


आप आये तो धरती भी खिल सी उठी।


कर रही प्रेम से स्वगतम स्वगतम।।


 


ये पड़े सूखे वृक्षों की मायूसियों-


में तरावट का मंजर दिखा आज है।।


 


सारा माहौल सुंदर सुहाना हुआ।


ये गगन झाँकता कर रहा स्वगतम।।


 


सारे पंछी भी आये मिलन के लिये।


चहचहाते हुए कर रहे स्वगतम।।


 


आप का आना कितनी मनोरम छटा।


सारा पर्यावरण कर रहा स्वगतम।।


 


मंच पर मेरे उर के रहें आप बस।


कर रहा मन सुमन स्वगतम स्वगतम।।


 


बस यहीं का बनो बस रहो आँगना।


यही अंतिम इच्छा हृदय कामना।।


 


सिर्फ तुझको निहारूँ नहीं और कुछ।


कर लो स्वीकार प्यारे मेरी याचना।।


 


फूल की बगिया तेरे लिये है सजी।


राह में पुष्प वर्षा से है स्वगतम।।


 


बाँह में बाँह डाले चलेंगे सदा।


आप के आगमन का सदा स्वगतम।।


 


झोली भर दूँगा मुस्कान से आप का।


स्वगतम स्वगतम स्वगतम स्वगतम।।


 


जो कहेंगे वही मैं करूँगा सदा।


स्वप्न में भी नहीं सोचना है जुदा।।


 


आप को देखकर जिंदगी खुशनुमा।


आप का स्वगतम नित्य नव स्वगतम।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...