डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*सम्मान*


 


छोटा बड़ा न जानिये, सब हैं एक समान।


हर मानव को चाहिये, स्नेह प्रेम सम्मान।।


 


उम्र बड़ी होती नहीं, होता बड़ा विचार।


रचते दिव्य विचार ही, प्रिय स्वर्गिक संसार।।


 


बड़ी उम्र में यदि घुसा, मन में घटिया भाव।


बड़ा उसे कैसे कहें,जिसके गंदे दाव।।


 


बड़ा वही ताउम्र है, जिसमें बुद्धि-विवेक।


करता काम अनेक है, बनकर सबका नेक।।


 


मानवीय संवेदना, का जिसमें भण्डार।


वही परम सम्मान का, रखता है अधिकार।।


 


मानव हड्डी-मांस का, पुतला नहीं है जान।


सद्विचार के माप से, कर लो इसका ज्ञान।।


 


अंतहीन यह पथिक है, अंतहीन है पंथ।


जीवन पथ पर चल रहा, लिखते अपना ग्रन्थ।।


 


यह विचार का पुंज है, चिंतन इसका मूल।


बन जाता सत्कर्म से , इक दिन सुरभित फूल।।


 


मानवता से युक्त जो, नैतिकता आधार।


रचता रहता अनवरत, सम्मानित संसार।।


 


ऐसे सम्मानित मनुज, की मत पूछो आयु।


जग का संचालन यही, करते बनकर वायु।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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