डॉ. रामबली मिश्र

मुझको मन का मीत चाहिये।


सुंदर सरल विनीत चाहिये।।


 


मीठी सी आवाज चाहिये।


मधुर रसिक अंदाज चाहिये।।


 


सुंदर-सुंदर बोल चाहिये।


भावुक उर अनमोल चाहिये।।


 


अधरों पर मुस्कान चाहिये।


पावन भाव उड़ान चाहिये।।


 


रस की वर्षा हो जिह्वा से।


मिलें परस्पर आब-हवा से।।


 


मुझको पावन प्रीति चाहिये।


बरसाने की रीति चाहिये ।।


 


गावों का संगीत चाहिये।


सावन का शिव गीत चाहिये।।


 


आँखों का संवाद चाहिये।


नजरें प्रिय आजाद चाहिये।।


 


 हों वासंतिक सुघर बयारें।


जीवन वीते मीत सहारे।।


 


निद्रा भागे होय जागरण।


बसे हृदय में प्रिय उच्चारण।।


 


प्रिय पाठों का परायण हो।


जलता जाये नित रावण हो।।


 


सीधा-सादा मीत चाहिये।


बहुत सहज निर्भीक चाहिये।।


 


दिल का सच्चा-साफ चाहिये।


प्रियतम मधु इंसाफ चाहिये।।


 


जोड़ी पक्की रहे निरन्तर।


लगे देखने में अति सुंदर।।


 


भरी हुई अति मादकता हो।


प्रिय भावों की व्यापकता हो।।


 


मेरा मीत दिव्य मानव हो।


शिष्ट सौम्य सुजन अनुभव हो।।


 


नजर लगे मत कभी मीत को।


देवों का आशीष मीत को।।


 


मेरा प्यारा चयन अनोखा।


नहीं लेश मात्र का धोखा।।


 


मेरे प्यारे प्रियतम आओ।


चिर निद्रा को आज जगाओ।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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