संवेगात्मक संबन्ध
संवेगात्मक भाव में, छिपा गहन है अर्थ।
संवेगात्मकशून्यता ,का जीवन है व्यर्थ।।
संवेगों की नींव पर, टिका हुआ है प्यार।
जहाँ नहीं संवेग है, सब कुछ वहाँ नकार।।
भावुक मन ही समझता, संवेगों का मर्म।
भावशून्य मानव हृदय, शुष्क मरुस्थल चर्म।।
संवेगों को जानता, कभी नहीं अज्ञान।
ज्ञानीजन के हॄदय में, संवेगों का मान।।
संवेगों को मत कुचल, कर लो हृदय विशाल।
मानव मन की अस्मिता, का रख सदा खयाल।।
सहलाओ संवेग को, यह पावन सुविचार।
यही पुष्प की है कली, मानव का उपहार।।
इसे तोड़ता जो मनुज, वह दानव अति क्रूर।
दंभ प्रदर्शन से भरा, वह दानव भरपूर।।
मैला मन करता सदा, इसका है अपमान।
संवेगों के विश्व में, सिर्फ एक भगवान।।
संवेगात्मक वंधनों, पर पावन संबन्ध।
आध्यात्मिक अनुवंध यह, हिय से हिय आवद्ध।।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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