निसर्ग
कितने कोमल कितने सुंदर
परम मनोहर भाव उच्चतर
दिव्य निरंकुश अति शालीना
सहज रम्य मुस्कान निरन्तर।
झर-झर झरना कल-कल सरिता
प्रकृति निराली में अति शुचिता
सर-सर पवन चलत सुखदायक
दिव्य तेजमय सृजित सुप्रियता।
हंसनाद हिमनाद मनोरम
बहत समंदर गंगा अनुपम
नदी पहाड़ वनस्थलि जंगल
खग-मृग सकल मनोहर उत्तम।
नैसर्गिक आनंद सुहावन
बारह माह स्वर्ग मनभावन
गगन भूमि अतिशय आकर्षक
गर्मी वर्षा शीत लुभावन।
मादकता संवेदना लपेटे
अपने में सत्कृत्य समेटे
बाँट रहा निसर्ग दाता बन
मुफ्त दान सद्ज्ञान अटूटे।।
बोल रहा है चलो प्रेम पथ
ज्ञान सीख बाँट बैठ रथ
विचलन में विश्वास न करना
बहे त्रिवेणी भक्ति सहित अथ।
डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें