कविता
कविता नहीं मात्र कल्पना,
भाव गहन गहराई है।
भाव-सिंधु में कवि-मन डूबे-
यह मोती उतिराई है।।
जीवन का हर रंग घुला जब,
मिला ढंग हर सुख-दुख का।
सुबह-शाम पंछी का कलरव,
बना गान जब कवि-मुख का।
बहे जो अक्षर-सरिता बन कर-
वही सत्य कविताई है।।
गगन में उड़ता देख परिंदा,
कवि-मन उसे पकड़ लेता।
खिले फूल को देख चमन में,
झट-पट उसे जकड़ लेता।
भूखे बालक की पीड़ा में-
कविता जगह बनाई है।।
अवनि दहकती है ज्वाला से,
जब-जब अत्याचारों की।
अबला की जब अस्मत लुटती।
कुत्सित सोच-विचारों की।
बन कटार तब प्रखर लेखनी-
कविता-धार बहाई है।।
जब भी दुश्मन वार किया है,
सीमा के रखवालों पर।
वीर राष्ट्र के सैनिक अपने,
देश-भक्त मतवालों पर।
क्रांति-भाव का बन कवित्त यह-
विजयी बिगुल बजाई है।।
कवि-उर की यह भाव बहुलता,
यह उड़ान मन-भावन है।
सर्दी-गर्मी हर मौसम में,
यह तो फागुन-सावन है।
कविता की ही बोली-भाषा-
भाषा की प्रभुताई है।।
भाव-सिंधु में कवि-मन डूबे,
यह मोती उतिराई है।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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