डॉ0 हरि नाथ मिश्र

कविता


कविता नहीं मात्र कल्पना,


भाव गहन गहराई है।


भाव-सिंधु में कवि-मन डूबे-


यह मोती उतिराई है।।


 


जीवन का हर रंग घुला जब,


मिला ढंग हर सुख-दुख का।


सुबह-शाम पंछी का कलरव,


बना गान जब कवि-मुख का।


बहे जो अक्षर-सरिता बन कर-


वही सत्य कविताई है।।


 


गगन में उड़ता देख परिंदा,


कवि-मन उसे पकड़ लेता।


खिले फूल को देख चमन में,


झट-पट उसे जकड़ लेता।


भूखे बालक की पीड़ा में-


कविता जगह बनाई है।।


 


अवनि दहकती है ज्वाला से,


जब-जब अत्याचारों की।


अबला की जब अस्मत लुटती।


कुत्सित सोच-विचारों की।


बन कटार तब प्रखर लेखनी-


कविता-धार बहाई है।।


 


जब भी दुश्मन वार किया है,


सीमा के रखवालों पर।


वीर राष्ट्र के सैनिक अपने,


देश-भक्त मतवालों पर।


क्रांति-भाव का बन कवित्त यह-


विजयी बिगुल बजाई है।।


 


कवि-उर की यह भाव बहुलता,


यह उड़ान मन-भावन है।


सर्दी-गर्मी हर मौसम में,


यह तो फागुन-सावन है।


कविता की ही बोली-भाषा-


भाषा की प्रभुताई है।।


   भाव-सिंधु में कवि-मन डूबे,


    यह मोती उतिराई है।।


           © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


              9919446372


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