डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दिव्य दशहरा पर्व यह,रामचंद्र-उपहार।


दनुज-दलन कर राम ने,किया बहुत उपकार।।


 


रावण-कुल का नाश कर,किए पाप का अंत।


अघ-बोझिल इस धरा का,हरे भार भगवंत ।।


 


सदा सत्य की है विजय,किए प्रमाणित राम।


मद-घमंड-छल-छद्म से,बने न कोई काम ।।


 


अभिमानी रावण मरा,जला पाप का लोक।


भक्तों को प्रभु त्राण दे,दिए वास परलोक।।


 


सत्य-धर्म के हेतु प्रभु,लिए मनुज-अवतार।


मर्यादा की सीख दे, जग को लिए उबार।।


 


कपट-झूठ,छल-छद्म पर,मिली विजय अनुकूल।


इसी दिवस शुभ पर्व पर,मरा काल प्रतिकूल।।


 


राम-नाम शुभ मंत्र है,जपो सदा दिन-रात।


रहो मनाते पर्व यह,बन जाएगी बात।।


          © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


              9919446372


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