दिव्य दशहरा पर्व यह,रामचंद्र-उपहार।
दनुज-दलन कर राम ने,किया बहुत उपकार।।
रावण-कुल का नाश कर,किए पाप का अंत।
अघ-बोझिल इस धरा का,हरे भार भगवंत ।।
सदा सत्य की है विजय,किए प्रमाणित राम।
मद-घमंड-छल-छद्म से,बने न कोई काम ।।
अभिमानी रावण मरा,जला पाप का लोक।
भक्तों को प्रभु त्राण दे,दिए वास परलोक।।
सत्य-धर्म के हेतु प्रभु,लिए मनुज-अवतार।
मर्यादा की सीख दे, जग को लिए उबार।।
कपट-झूठ,छल-छद्म पर,मिली विजय अनुकूल।
इसी दिवस शुभ पर्व पर,मरा काल प्रतिकूल।।
राम-नाम शुभ मंत्र है,जपो सदा दिन-रात।
रहो मनाते पर्व यह,बन जाएगी बात।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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